Top Agriculture Training In India

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अगर आप मछली पालन को व्यवसाय के रूप में करना चाहते हैं और आपके पास जगह कम है तो बायोफ्लॉक विधि से मछली पाल सकते हैं। इस विधि में लागत कम और मुनाफा ज्यादा होता है, देखिए एक सफल युवा शिवरतन सैनी की कहानी

पिछले एक साल से कम जगह और कम पानी में ज्यादा से ज्यादा मछली का उत्पादन ले रहे है। उनकी इस विधि के इस्तेमाल से पानी की बचत तो हो रही है साथ वह लाखों की कमाई भी कर रहे हैं।

राजस्थान में जयपुर जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर सांगानेर में रहने वाले शिवरतन सैनी बायो फ्लॉक विधि से मछली पालन कर रहे हैं। बायोफ्लॉक मछली पालन में एक नई विधि है। इसमें टैंकों में मछली पाली जाती है। टैंकों मेंमछलियां जो वेस्ट निकालती है उसको बैक्टीरिया के द्वारा प्यूरीफाई कियाजाता है। यह बैक्टीरिया मछली के 20 प्रतिशत मल को प्रोटीन में बदल देताहै। मछली इस प्रोटीन को खा लेती हैं।

बायोफ्लॉक: मछली पालन की इस विधि में कम पानी, कम जगह में ले ज्यादा उत्पादन मछली पालन की इस तकनीक के बारे में शिवरतन सैनी कहते हैं, "इस तकनीक में पानी की बचत तो है ही साथ ही मछलियों के फीड की भी बचत होती है। मछली जो भी खाती है उसका 75 फीसदी वेस्ट निकालती है और वो वेस्ट उस पानी के अंदर ही रहता है और उसी वेस्ट को शुद्व करने के लिए बायो फ्लॉक का इस्तेमाल किया जाता है जो बैक्टीरिया होता है वो इस वेस्ट को प्रोटीन में बदल देताहै, जिसको मछली खाती है तो इस तरह से 1/3 फीड की सेविंग होती है।" शिव बताते है कि एक टैंक तीन मीटर डाया का है ,जिसमें 10 हजार लीटर पानी आता है। इसमें करीब पांच कुंतल मछलियां पैदा कर लेते है। एक बार टैंक में पानी भर गया तो पूरा कल्चर इसी में हो जाता है। ज्यादा से ज्यादा 100-200 लीटर पानी डालना पड़ता है। " तालाब और बायोफ्लॉक (biofloc) तकनीक में अंतर के बारे में शिव बताते हैं,"तालाब में सघन मछली पालन (fish farming) नहीं हो सकता क्योंकि ज्यादा मछली डाली तो तालाब का अमोनिया बढ़ जाएगी तालाब गंदा हो जाएगा और मछलियां मर जाऐंगी। जबकि इस सिस्टम में आसानी से किया जा सकता है। इस तकनीक में फीड की काफी सेविंग होती है। अगर तालाब में फीड की तीन बोरी खर्च होती है तो इस तकनीक में दो बोरी ही खर्च होंगी।"

बायो फ्लॉक तकनीक में एक टैंक को बनाने में कितनी लागत आएगी वो टैंक के साइज के ऊपर होता है। टैंक का साइज जितना बड़ा होगा मछली की ग्रोथ उतनी ही अच्छी होगी और आमदनी भी उतनी अच्छी होगी। टैंकों में आने वाले खर्च के बारे में शिव बताते हैं, एक टैंक को बनाने में 28 से 30 हजार रुपए का खर्चा आता है जिसमें उपकरण और लेबर चार्ज शामिल है। टैंक को साइज जितना बढ़ेगा कॉस्ट बढ़ती चली जाएगी। "

इस तकनीक में 24 घंटे बिजली की जरुरत

इस तकनीक में 24 घंटे बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए। क्योंकि इसमें जो बैक्टीरिया पलता है वो ऐरोबिक बैक्टीरिया है जिसको 24 घंटे हवा की जरुरत होती है तभी वह जीवित रहता है। धर्मवीर बताते हैं, "इस सिस्टम को बिना बिजली के नहीं चलाया जा सकता है। मैंने चार टैंक के लिए एक इनवेटर लगा रखा है।"

इस तकनीक से कम होगा नुकसान

मछली पालकों को तालाब की निगरानी रखनी पड़ती है क्योंकि मछलियों को सांप और बगुला खा जाते हैं जबकि बायो फ्लॉक वाले जार के ऊपर शेड लगाया जाता है। इससे मछलियां मरती भी नहीं है और किसान को नुकसान भी नहीं होता है।

पानी और बिजली की कम खपत

एक हेक्टेयर के तालाब में हर समय एक दो इंच के बोरिंग से पानी दिया जाता है जबकि बायो फ्लॉक विधि में चार महीने में केवल एक ही बार पानी भरा जाता है। जमा होने पर केवल दस प्रतिशत पानी निकालकर इसे साफ रखा जा सकता है। टैंक से निकले हुए पानी को खेतों में छोड़ा जा सकता है।